आम का पेड़

                          

सुना है कल कटेगा आम का वह पेड़ ।
दूर तक फैली हुई थी टहनियां,
बहुत पत्ते थे टहनियों पर ।
आम भी तो खूब लगते थे ।
डालियों के सघन पत्तों  में छिपे थे
ढेर सारे घोंसले ।
घोंसलों में थे कहीं अंडे
कहीं नन्हें पखेरू,
बंद आंखें,  चोंच खोले, चहचहाते
आस भर कर मां पिता की राह तकते ........ । 
सुना है कल कटेगा पक्षियों का वह बसेरा ।
पेड़ पूरे गांव की संपत्ति था ।
फल सभी के घर पहुंचते  थे ।
गर्मियों में छांव भी सबको मिला करती ।
पर अचानक चंद सिक्कों के लिए उस पेड़ को
कर दिया नीलाम एक सरपंच ने ।  
सुना है कल कटेगा आम का अच्छा भला वह पेड़ ।
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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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