सुना है कल कटेगा
आम का वह पेड़ ।
दूर तक फैली हुई थी
टहनियां,
बहुत पत्ते थे
टहनियों पर ।
आम भी तो खूब लगते
थे ।
डालियों के सघन
पत्तों में छिपे थे
ढेर सारे घोंसले ।
घोंसलों में थे
कहीं अंडे
कहीं नन्हें पखेरू,
बंद आंखें, चोंच खोले, चहचहाते
आस भर कर मां पिता
की राह तकते ........ ।
सुना है कल कटेगा
पक्षियों का वह बसेरा ।
पेड़ पूरे गांव की
संपत्ति था ।
फल सभी के घर
पहुंचते थे ।
गर्मियों में छांव
भी सबको मिला करती ।
पर अचानक चंद
सिक्कों के लिए उस पेड़ को
कर दिया नीलाम एक
सरपंच ने ।
सुना है कल कटेगा
आम का अच्छा भला वह पेड़ ।
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