अंधेर नगरी – दूसरा भाग


                                                                                  

                  (चौपट राजा  अफीम खाकर सिंहासन पर बैठे हैं । सभी मंत्री अपनी अपनी कुरसियों पर ऊंघ रहे हैं । तभी द्वारपाल जाता है )

द्वारपाल   महाराज की जय हो । सेठ ठगानी फरियाद ले कर आया है ।
वजीर       जाओ, तुरंत ठगानी को लिवा लाओ ।
ठगानी     (विलाप करते हुए) महाराज मैं लुट गया ।
राजा        क्‍या हुआ बे ठग ? ये चिल्‍ल पों क्‍यों मचा रखी है ?
ठगानी     आपके कारिन्‍दे ने एस.ई.जेड. की जमीन साफ कराने के लिए भारी रिश्‍वत ली थी । मगर काम नहीं किया ।
राजा        वजीर पितंबरम जी, कारिंदे को पेश किया जाए ।
                  (कारिंदे को फौरन उठवा कर लाया जाता है)
राजा        क्‍यों बे कारगिल की औलाद । ठगानी से रिश्‍वत ली फिर उसका काम क्‍यों नहीं
                  किया  ?
कारिन्‍दा   (हाथ जोड़ कर सिजदा करते हुए) जान बख्‍श दी जाय हुजूर । इस ठगानी ने जो नोट रिश्‍वत में दिये थे सारे नकली थे ।
राजा        क्‍यों बे ठग की औलाद, साले नकली नोटो का धंधा करता है, हमारे राज में ? वजीरे खजाना पितंबरम जी, इस गिरहकट को क्‍या सजा सुनाऊं ?
वजीर       क्‍यों सच सच नहीं बताता ठगन्‍ने ? कहां से आये थे वे नकली नोट, जो तैने कारिन्‍दे को दिये ?
ठगानी     महाराज, मैं तो नई गड्डियां बैंक से लाया था । मेरी क्‍या गलती ?
राजा        उस बैंक के मैनेजर की मुश्‍कें बांध कर अभी हमारे सामने पेश किया जाए ।
(मुश्‍के बांधकर मैनेजर को दरबार में पेश किया जाता है )
राजा        क्‍यों बे भिखमंगे, तूने अपने बैंक से इस ठग को क्‍यों नकली नोट दिये कि इसने
                  एस.ई.जेड को दिये और कारकुन साफ नहीं हो सकी ?
वजीर       महाराज, कारिन्‍दे को दिये और ----------------------
राजा        हां हां, जमीन साफ नहीं हो सकी ।
बैंक मैनेजर दुहाई है महाराज, धन्‍ना बाबू ने वे नोट जमा किये थे । उसने मशीन से चैक नहीं
                  किये होंगे ।
राजा        वजीर, उस पाजी धन्‍ना को बांध, घोड़े से घसीटते हुए पेश किया जाए ।
                  (धन्‍ना बाबू को घसीटते हुए दरबार में लाया जाता है)
                  उसकी छिली हुई पीठ से खून बह रहा है । वह हाथ जोड़े थर थर कांप रहा है ।
राजा        क्‍यों बे नाम के धन्‍ने, अकल के अधन्‍ने, तूने ग्राहकों से जब नोट लिये थे तो चैक क्‍यों नहीं किये ?
धन्‍ना बाबू चैक किये थे महाराज, वह मशीन ही खराब रही होगी ।
राजा        उस  बदमाश मशीन को सरब मुहर बांध कर पेश किया जाए ।
वजीर       महाराज, मशीन बेजान चीज है, पेश नहीं हो सकती ।
राजा        तो फिर मशीन बनाने वालो को पेश किया जाए ।
                  (मशीन बनाने वाले कारीगर को लाया जाता है)
राजा        क्‍यों बे मशीन के बच्‍चे, दाल दाल के कच्‍चे, ऐसी मशीन क्‍यूं बनाई जो बोल नहीं सकती, जो असली नकली नोट पहचान नहीं सकती । बता सच सच, नहीं अभी हाथी के पैरों तले फिकवाता हूं ।
इंजीनियर (हाथ जोड़, थर थर कांपते हुए) हुजूर उस कंपनी के पुर्जों में खराबी थी । मशीन
                   तो मैंने ठीक ही बनाई थी ।
राजा        तो उन पुर्जों को पेश किया जाए । अभी न्‍याय किये देता हूं ।
वजीर       महाराज पुर्जें बेजान होते हैं । वे सिर्फ काम करते हैं, बोलते नहीं ।
राजा        फिर पुर्जें बनाने वाले को पेश किया जाए ।
                        (सिपाही एक मैकेनिक को बांध कर लाते हैं)
राजा        क्‍यों बे चलते पुर्जें, तूने ऐसे नोट क्‍यों बनाये कि धन्‍ने की जमीन साफ नहीं हो सकी और ठगानी नोट नहीं जांच पाया, जिससे हमारा रिश्‍वत खोर कारिन्‍दा मशीन सही नहीं बना सका -------------- ।
वजीर       नहीं महाराज, जिससे मशीन सही नहीं बनी । धन्‍ना बाबू नोट नहीं जांच सका । ठगानी को नकली नोट मिले । कारिन्‍दे ने नोट जाली देख कर काम नहीं किया । ठगानी को मिलने वाली जमीनों के कब्‍जे हट नहीं सके, जिससे ठगानी ठगा गया ।
राजा        हां हां ऐसे ही । जल्‍दी बता, नहीं अभी तेरी नंगी पीठ पर कोड़े बरसाता हूं ।
मैकेनिक जान बख्‍श दी जाए हुजूर । हम तो आटा कंपनी के नौकर हैं । जैसा माल मिलेगा,
                  वैसे पुरजे बनायेंगे । हमारी कोई गलती नहीं है अन्‍नदाता ।
राजा        वजीर पितंबरम जी, उस मक्‍कार आटे को अभी हमारे सामने पेश किया जाए ।
                        (सिपाही धकियाते हुए आटा को पेश करते हैं )
राजा        क्‍यों बे आटे के कनस्‍तर, हमारे राज में नकली पुरजे बनाता है ? वजीर तुम्‍हीं
बताओ इस धोखेबाज को कौन सी सजा सुनाई जाए ताकि दो‍बारा हमारे राज में नकली धन्‍ने पैदा न हों और ठगानी साफ हो सकें ।
वजीर       नहीं महाराज, ताकि हमारे राज में नकली नोट न चल सके और ठगानी की जमीन साफ हो सके ।
राजा        हां हां ऐसे ही ।
आटा       (हाथ जोड़कर गुहार करते हुए) महाराज जान बख्‍शी जाए । इतने महंगे पुरजे कौन न बनाने के झंझट में पड़े । इसलिए मैं अमरीका से मंगा लेता था । लेकिन महाराज इंपोर्ट ड्यूटी अभी भी ज्‍यादा है । कुछ बचता वचता नहीं है । आपके कारकुनों के रेट दिनों दिन बढ़ते जा रहे हैं । यही सोच कर ड्यूटी बचाने के लिए मैं ये पुरजें चार बाजार से मंगाता हूं । हो सकता है, कोई लाट गड़बड़ आ गया हो । गलती तो चोरों से भी हो सकती है महाराज ।
राजा        क्‍यों बे वजीर की औलाद । तैने इतनी इंपोर्ट ड्यूटी क्‍यों बढ़ाई कि आटा को घाटा हुआ । चोर बाजार से पुरजे आये, नकली धन्‍ना बना व ठगानी साफ नहीं हो सका।  जल्‍दी बता नहीं अभी तुझे सूली पर चढ़ाता हूं ।
(वजीर के पैरों तले जमीन खिसक गई । उसे लगा, अगर इस चौपट राजा को जल्‍दी से जल्‍दी समझाया न गया तो आज सूली पर चढ़ना पड़ जायेगा । राजा, पागल हाथी, बिच्‍छू, कटखने कुत्‍ते का क्‍या भरोसा । जाने कब जाने के दुश्‍मन हो जायें । हाथ जोड़कर समझाता हूं ।)
वजीर       जान बख्‍श दी जाए महाराज । आजकल हमारे राज्‍य के नौजवान रातों रात अंधेर नगरी को मालामाल करने पर तुले हुए हैं । यह तभी मुमकिन हुआ जब तस्‍करी बढ़ी। तस्‍करी तभी बढ़ी जब इंपोर्ट ड्यूटी लगी । अब तो आपकी अंधेर नगरी में लोग तस्‍करी का माल खा खाकर मोटे हो गये हैं । दुबला पतला कोई दीखता ही नहीं । मैक्‍डॉनल के बर्गर, पिज्‍जा, खा खाकर वे पेप्‍सी कोक पी पीकर लोग भैंसे हो गये हैं । ये मोटाई आपके अच्‍छे ढंग से राजकाज चलाने से ही आई है महाराज । अब तो कोई मरियल दुबला पतला इन्‍सान आपकी अंधेर नगरी में ढूंढने से मिले तो मिले ।
अगर कोई पाजी दुबला पतला अभी अपने राज में मिल गया तो समझ लो वही गुनेहगार है । क्‍यूंकि अगर वो मरियल न होता तो हमारे नौजवानों को जरुरत थी तस्‍करी करने की ? और तस्‍करी न होती तो गलत पुरजे न आते । गलत मशीन न बनती । धन्‍ना बाबू ठगानी को सारे नोट जाली न देता । हमारे कारिन्‍दे को असली नोट मिलते रिश्‍वत में, तो वह ठगानी के एस.ई.जेड. से काश्‍तकारों के कब्‍जे कब के हटा देता । और अब तक उस इलाके को ठगानी डवलप करके बेच चुका होता । इसलिए महाराज, सारे फसाद की जड़ है वो गरीब, मरियल, भूखा प्‍यासा, दुबला पतला, नंगा, लंगोटी पहने हुए मैला कुचैला आदमी । सजा उसी को मिलनी चाहिये ।
                  (चौपट राजा ने अफीम काएक और अंटा शराब के साथ निगला और कहा)
राजा        वाह । हमारा वजीर कितनी समझदार है । पितंबरम जी हम तुम्‍हारी सूझ बूझ पर खुश होकर यह नौ लड़ियों वाला मोतियों का हार तुम्‍हें बख्‍शीश देते हैं । जाओ । उस पाजी गुरबे को, अधनंगे, भूखमरे को, कलमी आम की गुठली से उस दुबले पतले  किसान की मुश्‍कें बांध कर अभी पेश करो हमारे सामने । हम उसे ऐसी सजा देंगे कि उसके नरक में पड़े पुरखों की रुह भी कांप उठेगी ।
(वजीर पसीना पोंछते, सिजदा करते हुए बाहर निकल जाता है, राजा के सिपाही सबसे दुबला पतला आदमी खोजने निकल जाते हैं । आखिर ऐसा एक आदमी उन्‍हें मिल जाता है । उसकी मुश्‍कें बांध, गोला लाठी भर, सिपाही दरबार में पेश करते हैं । राजा की त्‍यौरियां चढ़ जाती हैं । वह कड़क कर कहता है)
राजा क्‍यों बे  भुखमरे, तेरे लिये हमारे राज में खाना नहीं बचा ?
किसान    नहीं बचा महाराज ।
राजा        नहीं बचा ? किसने खाया तेरे हिस्‍से का ?
किसान    इस ठगानी ने महाराज । हमारी जमीने इसी ने आपके कारकुनों की मदद से छीन लीं । हम भूखों मर रहे हैं महाराज ।
(तभी सारे मंत्री एक साथ खड़े होकर बोलने लगते हैं )
मंत्री         ठगानी ईमानदार है महाराज । रिश्‍वत की पाई पाई देता है । खजाने में भी आपके सबसे ज्‍यादा चंदा देता है । ये किसान झूठ बोलता है महाराज ।
राजा        (जल्‍लादों से ) अब देखते क्‍या हो ? झूठे, भूखे, दुबले कुचले इन्‍सानियत के धब्‍बे को ले जाओ और सरे बाजार सूली पर चढ़ा दो ।
(जल्‍लाद पकड़ कर किसानों को सूली की तरफ ले जाते हैं । वह चीखता है, बेगुनाह हूं । बचाओ । पर उसकी बात कोई नहीं सुनता ।

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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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