राजनीति के व्यापार से ‘ऊपर वाले’ की मेहरबानी से गुड्डू भैया ने खूब कमाई की थी, नाम की भी और दाम की भी । कई बार ‘ऊपर’ तक पहुंचे । मलाईदार पोर्टफोलियो हथियाया । आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित किया । दुश्मनों को स्वर्गलोक पहुंचाया । खुद खाते खेलते रहे । ‘दुष्टों’ का खेल बिगाड़ते रहे ।
इतना ज्यादा खाने – खेलने से, साफ सी बात है – दो चार छींटे उजली धोती पर पड़ते ही हैं । पड़े भी । मगर गुड्डू भैया ठहरे पेशेवर धोबी । ऐसी सफाई से धोते थे कि दुश्मन बस ढूंढते ही रह जाते । फिर भी कुछ मैल जिद्दी होते हैं । नहीं छूटते जल्दी से । वही कुछ दाग-धब्बे उनकी झीनी चदरिया पर बाकी रह गए थे ।
इन्हीं सपूत बाप के बेटे थे रज्जू भैया । कुल के दीपक । ‘बंस की बेल’ को झाड़ की चोटी तक चढ़ाने पर आमादा । जैसे ही गुड्डू भैया ने आंखे मूंदी, पार्टी की बागडोर रज्जू भैया ने अपने हाथ में जकड़ ली । राजनीति के किरकिटिया मैदान पर उतरते ही रज्जू भैया ने जो चौके छक्के जड़ने शुरु किये तो ‘अपोजिसन टीम’ हैरान रह गई । अरे ! ये लाल अब तक कौन सी गुदड़िया में छिपा था रे ! क्या क्लासिकल खेलता है ! है तो कोई मामूली शेयर, मगर तोड़ रहा है ब्लूचिप शेयरों की भी गरदनें । कमाल है !
एक रोज की बात है । रज्जू भैया मलाई खा रहे थे । खाते खाते पिताश्री की याद सताने लगी । गुड्डू भैया से सिर्फ पिता का नाता होता तो चल जाता । मगर वे तो रज्जू भैया के गुरु भी थे । याद आई तो खाना छूट गया, रुलाई आ गई । याद इस वजह से आई कि यही मलाई जब पिताश्री ने बीस साल पहले चट की थी तो बड़ा बवेला मचा था । सारे अखबार उस कारनामें से रंग गए । विरोधी ससुर एक ही लय-ताल में भौंकने लगे । मुंह दिखाना मुश्किल हो गया था ।
और आज उसी मलाई को रज्जू भैया इतनी आसानी से चाट रहे हैं कि कहीं कोई शोर नहीं, कोई आहट तक नहीं ।
आज भी ये ससुर अपोजिशन वाले पिताश्री की पुण्य तिथि पर वही घूसखोरी के घिसे-पिटे किस्से लेकर बैठ जाते हैं ? जहां देखो, एक ही बात - अरे बड़ा घूसखोर था गुड्डू साला । और लौंडा ! बाप से भी दो गज आगे ! सांड सा उजाड़ रहा है फसलों को ------
कीचड़ पिता के नाम पर उछले भले, मगर छींटे बेटे की कमीज पर ही पड़ेंगे । छोटी सी उमर से ही रज्जू भैया के कपड़े इस कीचड़ से बरबाद हो रहे थे । उन्होंने चिंतन की गहरी तलैया में डुबकी लगाई। एक तर्क हाथ लगा- अगर पिता के बुरे काम से बेटा बदनाम हो सकता है तो अच्छे काम से उनके नाम पर चार चांद क्यों नहीं लग सकते ?
वाह ! क्या आइडिया सर जी ! अब तो जरुरत थी सिर्फ यह याद करने की कि पिताश्री ने अच्छे काम कौन कौन से किये थे । ताकि बेटे के नाम पर चार चांद लग सकें ।
बहुत जोर डाला दिमाग पर । पुराने अखबार, पुराने फोटो सभी कुछ खंगाले । मगर सब बेकार ! एक भी काम ऐसा न मिला जो पिताश्री ने अच्छा किया हो । सब दो नंबर के या फिर अपने फायदे के। अखबार की किसी कतरन में उनके रिश्वत खाने के प्रमाण छपे तो किसी में कौमी दंगे कराने के । कहीं वे सीना फुलाए, गर्व से दलबदल करते दिखाए गए थे तो कहीं चुनावों में भारी धांधली कराने के कारनामें फोटो के साथ छपे थे । कहीं विदेशी बैंकों के खाते उछाले गए थे तो कहीं उनके ‘उज्जवल चरित्र’ पर चरित्र हीनता के गहरे धब्बे लगाए गए थे । विरोधियों का सफाया कराने, चुनावों के वक्त खुल कर शराब, कंबल व नकदी बंटवाने की खबरें तो बेहिसाब छपी थीं ।
इतना कुछ खोज कर भी ‘काम’ का कुछ भी हाथ नहीं लगा । हताश होकर वे अपने मैनेजमेंट गुरु ज्ञानप्रकाश जी की शरण में पहुंचे । ज्ञान प्रकाश जी दो कदम और आगे थे । समस्या रक्खी – ज्ञान प्रकाश जी, अपने पिता व गुरु गुड्डू भैया को महान बनाना चाहता हूं । मगर एक भी काम ऐसा नहीं मिला रिकार्ड में जिससे उन्हें, महान बनाया जा सके । क्या होगा ?
ज्ञान प्रकाश जी ने गौर से सुना । सुन कर लापरवाही से हंसे । और फिर अधपकी दाढ़ी खुजाते हुए बोले –
- ये किस युग की बातें कर दी आपने ? अरे, अच्छे काम किये बगैर महान बनना भी
कोई महान बनना हुआ ? इससे आसान काम तो दुनियां में कोई हो ही नहीं सकता । मजा तो तब है जाब आप जिंदगी भर उल्टे काम करें, रिश्वत खोरी, झूठ, फरेब, दंगे कराएं बेनामी दौलत जोड़ें, खून खराबे कराएं, दुनिया के सारे ऐशो आराम लूटें - और तब भी महान कहलाएं । आपने मास्टर मक्खन लाल जी का तकिया कलाम नहीं सुना ? हर वाक्य में वे एक जुमला जरुर जोड़ते हैं – बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा ? इस जुमले पर वे अमल भी बखूबी करते हैं ।
रज्जू भैया के चेहरे पर छाई निराशा शरद ऋतु के बादलों सी छंटने लगी । मुस्कराहट की मीठी मीठी गुनगुनाती धूप धीरे धीरे खिलने लगी । उन्हें अब इतना भरोसा तो हो चला था कि महानता का महान कामों से कोई रिश्ता नहीं है ।
अब समस्या थी कि पिताश्री को महान बनाने की कार्रवाई कहां से शुरु हो ?
इसका जवाब भी ज्ञान प्रकाश जी ने दिया । बोले – आजकल किसी को भी महान बनाया जा सकता है । अब ये रोजगार है । अमेरिका की कई कंपनियां नीच से नीच इंसान को भी महान बना सकती हैं । जितना गया – बीता आदमी होगा, महान बनने का रेट उतना ही ज्यादा होगा । ये होना भी चाहिए । कंपनी को मेहनत भी तो ज्यादा करनी पड़ेगी । पुराने कारनामे छिपाओ, नए अफसाने गढ़ो, उन्हें पब्लिक के दिलोदिमाग पर बिठाओ । खर्चा तो आएगा ही । फेस लिफ्टिंग करना कोई हंसी खेल तो है नहीं ।
रज्जू भैया बोले – अब तुमसे क्या छिपाएं । हम तो ठहरे दसवीं में दस बार फेलियर । हम क्या जानें क्या होता है ये फेस लिफ्टिंग ? हम तो सिर्फ वेट लिफ्टिंग जानते हैं । और या फिर दूध जलेबी खाकर दंड पेलना जानते हैं । ये सब तुम्हीं को समझना है । हमें तो बस इत्ता बता दो कि खरचा कित्ता आएगा । बाकी तुम जानो, तुम्हारा जाने काम ।
ज्ञान प्रकाश जी यही तो उगलवाना चाहते थे । मुस्कराए और बोले – नेता जी, भगवान ने शरीर के सब हिस्सों को अलग अलग काम सौंपे हैं । दिमाग सिर्फ सोचता है । हाथ पैर सिर्फ करते हैं । आप हमारे सिर हैं, सिर्फ सोचें । हम आपके हाथ पैर हैं । उस सोचे हुए को अंजाम हम देंगे । बाकी रहा खरचा – वरचा । वह कंपनी से पूछ कर बताना पड़ेगा । बता देंगे । आप कहीं भागे थोड़े जाते हैं ।
रज्जू भैया गदगद हो गए । उत्साह की लहरें भीतर उठने लगीं । जोश में बोले – ज्ञान प्रकाश जी, रुपिया चाहे लग जाए करोड़ों, मगर गुड्डू भैया को सदी का महान नेता बनाना है । आप कंपनी से बात करें । क्या कागज – पत्तर, क्या फोटो, फिलम, वीडियो देना है, अखबार का कौन कौन सा कतरन देना होगा – ये सब आप हमको बता देना । एडवांस पैसा जो भी कंपनी मांगे – दे दूंगा । बाकी, काम जरा जल्दी शुरु हो जाए, बस !
इस तरह गुड्डू भैया को सदी का महान नेता बनाने का ठेका एक अमरीकी कंपनी को तीस करोड़ में दे दिया गया । रज्जू भैया व ज्ञान प्रकाश जी को भी एक दो बार अमेरिका जाना पड़ा । वहां से विशेषज्ञों की टीम आई । सफाई अभियान शुरु हुआ ।
सबसे पहले अखबारों के दफ्तर से वे सब अखबार गायब हुए, जिनमें गुड्डू भैया की काली करतूतें छपी थीं । फिर टीवी के वे वीडियो उड़ाए गए जिनमें वे या तो घूस खा रहे थे या माफिया डॉन के साथ शराब पीते हुए मुजरा देख रहे थे । अदालतों में चल रहे उनके मुकदमों के खतरनाक दस्तावेज भी रातों-रात उड़ा लिये गए । विदेशी बैंकों के बदनाम खाते बंद करा दिये गए । कहीं अगर हॉलीवुड बॉलीवुड की हीरोइनों के साथ उनकी आपत्तिजनक हालत में तस्वीरें मिलीं तो उनके नेगेटिव भी जला दिये गए ।
महान बनाने का पहला चरण संपन्न हो चुका था । इस चरण में कूड़े-करकट की सफाई हुई ।
दूसरे चरण में इमेज बनानी थी । हर गली कूचे, हर चौक, हर नुक्कड़ पर गुड्डू भैया की मूर्तियां लगने लगीं । मूर्तियों में गुड्डू भैया मंद मंद मुस्कराते दाएं हाथ से अभयदान देते दिखाये गए थे । मूर्तियां इतनी सुंदर बनी थीं कि उन्हें तोड़ने का बिल्कुल मन नहीं करता था । मूर्ति की खूबसूरती में गुड्डू भैया के सारे बुरे कारनामे छिप गए ।
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