हे पूजनीय अतिथि ! हे देव तुल्य श्रीमान !
जब आप के चरण कमल हमारी पावन भूमि पर पड़े तो हम ही जानते हैं
कि सारा देश कितना प्रसन्न हुआ था ! आपके स्वागत मे हमने तालियां बजाईं , थालियां बजाईं , शंख
बजाए, घंटे और घड़ियाल बजाए . मतलब कि जो कुछ भी बजाने
योग्य था वह सब बजाया. आखिर आप हमारे सम्मानित अतिथि जो ठहरे ! वुहान की प्रयोगशाला मे जन्म लेने के फौरन बाद आप विश्व भ्रमण पर निकले तो हमारे यहां अर्थात अपने
पड़ोसी देश मे आप आना कैसे भूल जाते ! आज के रिश्ते थोड़े ही हैं हमारे आपके देश के ? जब
दुनिया खाल ओढ़े जानवरों के पीछे पत्थर लिए सारा सारा दिन भटकती थी तब आपके यहां मिसाइलों
के आरंभिक रूप बन चुके थे, तब आप रेशम ओढ़ने लग गए थे. और हम भी तो हडप्पा
मोहेंजोदारो जैसे आधुनिक शहरों मे रहा करते थे ! पर खैर ! गुजरे हुए इतिहास पर तो कायर
इतराते हैं. पुरुषार्थी तो इतिहास बनाते हैं.
तो हे अतिथि आप उसी पुरुषार्थ के इक्कीसवीं शताब्दी के संस्करण
हैं. आप जन्म से ही कितने समर्थ हैं यह केवल अनुभव
किया जा सकता है. हे परम आदरणीय विषाणु जी
! यद्यपि आपका आकार अत्यंत सूक्ष्म है किंतु आपके पराक्रम से समस्त भूमंडल कांप रहा है. आप पर उपनिषद का सूत्र “अणोरणीयान महतो महीयान...
पूरी तरह सटीक बैठता है. करीब बीस माइक्रॉन की देहयष्टि धारण किये हुए आप अत्यंत पराक्रमी हैं. जैसे शरीर को अत्यंत
सूक्ष्म करके हनुमान जी सुरसा को चकमा देकर समुद्र लांघ गए थे ठीक उसी शैली मे आप भी मानव देह धारियों के शरीर मे श्वास मार्ग से प्रविष्ट
होकर जहां चाहे वहां घूम आते हैं.
मानव देह के भीतर जो भी मनोरम अंग प्रत्यंग हैं उनमे आपका सबसे प्रिय स्थान फेफड़े
हैं. मानव देह की भीतरी यात्रा मे आपका पहला पड़ाव फेफड़े ही होते हैं. वहां पहुंच कर
पहले कुछ दिन तो आप विश्राम करते हैं तत्पश्चात आप मानव देह की प्रतिरोधक क्षमता को
जांचते हैं. अगर वह आपसे निर्बल हुई तो आप के पौ बारह हो जाते हैं. तब आप फेफड़ों से रक्त प्रणाली को जोड़ने वाली नालियों को चोक करना आरंभ कर देते हैं जिससे मानव को
सांस लेने मे तकलीफ होने लगती है. उसे लगता है मानो कोई उसका गला घोंट रहा है. तब मानव
को वेंटिलेटर पर लिटा कर कृत्रिम तरीके से प्राण वायु की आपूर्ति की जाती है.
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हे वामन अवतार ! बड़े सौभाग्य की बात है कि आपका जीवन काल अत्यंत छोटा है . अर्थात मात्र चौदह दिन. यदि इस अवधि मे मानव को बाहरी जीवन रक्षक प्रणाली पर रख दिया जाए और आपके जीवन चक्र कीअवधि की समाप्ति की प्रतीक्षा की जाए तो प्राणी का बाल भी बांका आप नहीं कर पाते और स्वयं मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं.
वैसे हम भारतीयों को यमलोक पहुंचाने मे आपको लोहे के चने
चबाने पड़े हैं. खुली गंदगी मे बन रही चाट,
कीड़े मकौड़ों वाले तेल मे तली
जा रही पकौड़ियां तथा तमाम मच्छरों मक्खियों से भरी चाशनी मे डूबती उतरती जलेबियां खाकर
भी भयानक विषाणुओं का दर्प हरने वाले हम वीर-
पुंगवों का आप क्या बिगाड़ लोगे यह आप भी भली भांति जानते हैं. हमारी चाय मे जो सड़क के किनारे गंदे नाले के बगल
मे बनती है – उसमे कितनी मक्खियों ने अपने प्राणों की आहुति दी होती है यह आप को कैसे
बताएं- लज्जा आती है. वही हाल हमारी चाय के दूध के पतीले का भी होता है. उसमे प्राणोत्सर्ग
किये हजारों मच्छरों , मक्खियों
को एक एक कर चुनने की बजाय हमारा दुकान दार एक ही बार मे छन्ने से छान कर गंदे नाले
मे प्रवाहित करता रहता है. चाय के द्वारा उन मृत प्राणियों के सहारे पल रहे सभी विषाणु
हमारे शरीर मे आश्रय पा जाते हैं. भीतर पहुंच कर वे जबरदस्ती आंतों गुर्दों जिगर फेफड़ों
आदि स्थानो पर ठिकाने बना लेते हैं पर हमारी भयंकर प्रतिरोधक शक्तियों के आगे उन्हे
हथियार डालने ही पड़ जाते हैं. इस चक्कर मे हमारा डी एन ए भी तरह तरह के हमलों का अभ्यस्त
हो जाता है तथा उसे स्वयं को हर खतरे के हिसाब से अपने रण कौशल को बदलना आ जाता है.
हे कोरोना प्रभु ! हमारे डीएनए की यह अद्भुत अपूर्व क्षमता देख कर आपकी बेबसी पर हमारे भीतरी अंग ठीक उसी तरह
अट्टहास करते हैं जैसे चक्रव्यूह मे अभिमन्यु को अकेले पाकर कौरव महारथी हंसे थे.
हे महाबली ! आप अश्वमेध यज्ञ के घोड़े की तरह संपूर्ण पृथ्वी
पर निरंकुश दौड़े जा रहे हो. किसी माई के लाल
मे आपकी रस्सी पकड़ कर आपको बांधने की ताकत नहीं है. अच्छे अच्छों को पानी पिला चुके
हैं भगवन आप . किंतु इस भारत भूमि पर पहली बार आपकी रेस मंद पड़ गई है. आप निकले तो
थे दिग्विजय करने किंतु यहां आकर आपको अनुभव
हो गया होगा कि गम और भी हैं जमाने मे.
हे अतिथि हमारी परंपरा रही है कि मेहमां जो हमारा होता है
वो जान से प्यारा होता है. बात बराबर है मगर वो क्या है न कि जब अतिथि बेशर्मी पर उतर
आए और घर से निकलने का नाम न ले तब उसके साथ अन्य तरीके अपनाने पड़ते हैं ताकि सांप
भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. इसी लिए शंख ध्वनि से आपका स्वागत करने के बाद हमने आपके पथ मे दीप
भी जलाए थे ताकि जब आप हमारा प्यारा देश छोड़ कर वापस जाएं तो अंधेरे मे कहीं रास्ता
न भूल जाएं.
किंतु आपकी ढीठता देख कर हम भी हैरान हैं! आपको हमारा देश
भी अच्छा लगने लगा है. आपका मूड लगता है यहां चतुर्मास बिताने का है.
हमने आपके सम्मान मे पूरे पैंतालीस दिन का अवकाश भी घोषित
किया. आपके चक्कर मे हमने मुंह पर मास्क भी बांधा ताकि आप समझ जाएं कि हमे सम्मानित
किया जा रहा है. हमने डेढ़ महीने के लॉक डाउन को भी खुशी खुशी झेला कि आपके अहं की तुष्टि
हो सके और आप प्रसन्न मन से हमारे घर से विदा फरमाएं. पर आपने अभी तक विदाई के संकेत
तक नही दिये हैं.
हे कोरोनाधिदेव,
हम हाथ जोड़ कर तथा सज़दे मे कमर झुका कर आपसे केवल इतना ही
जानना चाहते हैं कि आप कब तलक चले जाएंगे?
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