तब धृतराष्‍ट्र ने कहा

               



यमलोक में रहते हुए धृतराष्‍ट्र का मन अक्‍सर कुरु राज्‍य में खोया रहता । बैठे बैठे वह यही सोचते रहते कि हस्तिनापुर का सिंहासन अब किसके पास होगा । मेरे बारे में वहां लोग क्‍या सोचते होंगे ।
     यमराज उनके मन की बात ताड़ गये और कुछ समय के लिए उन्‍हें भू लोक की यात्रा पर भेज दिया ।
यात्रा खत्‍म करके धृतराष्‍ट्र वापस लौटे तो बेहद उदास थे । आते ही बोले बुरी खबर है गांधारी । पांडवों का इंद्रप्रस्‍थ तरक्‍की पर है । हमारा हस्तिनापुर एक छोटा सा गांव बन गया है ।
        - लेकिन वहां का राजा कौन है महाराज । गांधारी ने पूछा तो धृतराष्‍ट्र  बताने लगे अरे किसका राज, किसकी प्रजा । वहां आजकल भेड़ चाल है । जिसे वे लोक तंत्र कहते हैं ।
    -  मैं कुछ समझी नहीं ।
     - तो सुनो गांधारी, धृतराष्‍ट्र बोले वहां के राजाओं का चुनाव अब प्रजा करती है । मगर शासन की बागडोर किसी अदृश्‍य हाथ में रहती है । उसकी मरजी के बिना पत्‍ता भी नहीं हिलता ।
     - तो क्‍या वहां विदुर जैसे विद्वान और नीति निपुण लोग नहीं रहे । गांधारी की जिज्ञासा बढ़ी ।
      - हैं  गांधारी । विदुर जैसे अनेक विद्वान और नीतियों के जानकार आज भी वहां पर मौजूद हैं । लेकिन उनकी सुनता कौन है । मैं विदुर की सलाह कम से कम सुन तो लेता था ।
            धृतराष्‍ट्र एक ही सांस में कह गये धूर्त, मक्‍कार लोग विदुर के मुखौटे लगाकर भोली भाली प्रजा को ठग रहे हैं, भ्रमित कर रहे हैं ।
गांधारी सुनकर हंस पड़ी तो भूलोक के शासक स्‍मार्ट हो गये हैं । गुड । फिर कुछ ठहर कर  बोली और क्‍या विशेष बात देखी आपने ।
धृतराष्‍ट्र  ने कहा गांधारी, भूलोक में वर्गाश्रम धर्म का लोप हो गया है । शासक वर्ग के लोग पिचहत्‍तर वर्ष की आयु तक विवाह नहीं करते, बाल ब्रह्मचारी बने रहते हैं । नब्‍बे नब्‍बे वर्ष की अवस्‍था होने पर भी संन्‍यास नहीं लेते । घुटने नाकाम होते हैं तो स्‍टील के लगवा लेते हैं । हृदय बैठने लगता है तो शल्‍य चिकित्‍सा करवा कर किसी युवक का हृदय लगवा लेते हैं । अनेक शासक तो ऐसे हैं गांधारी जिनके शरीर के लगभग सारे अंग प्रत्‍यंग बदल गये हैं ।
       गांधारी के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आयीं थीं । बोली ये कैसा लोक तंत्र है महाराज । नेतृत्‍व का अधिकार युवा  शक्ति को न सौंपना क्‍या अन्‍याय नहीं है । सत्‍य कहती हो प्रिये आज भू-लोक में सत्‍ता प्रजा की भलाई का माध्‍यम नहीं रही । शासकों के कद तो छोटे हुए ही, मगर उनकी सोच तो बिल्‍कुल ही छोटी हो गयी है । चारों तरफ लूट खसोट हो रही है । रिश्‍वतखोरी, भाई भतीजावाद का बोलबाला है । योग्‍य, विद्वान लोग सत्‍ता की मुख्‍यधारा से दूर ठेल दिये गये हैं । प्रजा के रखवाले आज वे लोग हैं जिन पर चोरी, डकैती, हत्‍या, अपहरण और बलात्‍कार के दर्जनों मामले दर्ज हैं । मेरे शासन के समय दुर्योधन, दुशासन मित्र कर्ण आदि ने थोड़ी बहुत शरारते ही तो की थीं, लेकिनउन्‍हें कितना बढ़ा चढ़ाकर दिखाया गया । व्‍यास जी तो आज भी अमर हैं । क्‍या यह सब उन्‍हें दिखाई नहीं देता । क्‍यों नहीं लिखते एक और महाभारत ।

- ये आप क्‍या कह रहे हैं महाराज । भू-लोक के शासक क्‍या सचमुच इतने समझदार हो गये हैं । गांधारी को जैसे विश्‍वास ही न हुआ ।
- सत्‍य कहता हूं गांधारी । रिश्‍वत के बल पर भू-लोक में क्‍या कुछ नहीं होता । अयोग्‍य लोगों को योग्‍यता के पुरस्‍कार मिलते हैं । जाति के आधार पर कार्यालयों में पदोन्‍नति दी जाती है । जो राज्‍य कर्मचारी जितनी रिश्‍वत देता है, वह उतना ही कार्यकुशल समझा जाता है । ऐसे भ्रष्‍ट कर्मचारियों को, शासन तंत्र में बैठे हुए वृद्ध पूरा संरक्षण प्रदान करते है । ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कोई भूला भटका ईमानदार मंत्री यदि कठोर कार्रवाई करना भी चाहे तो ये बिगडैल बू्ढ़े सरकारें गिराने की धमकी देने लगते हैं ।
- सच कहते हैं कि कुरु कुल शिरोमणि .      गांधारी की उत्‍सुकता बढ़ रही थी, लेकिन एकाएक वह उदास हो गयी । गला रुंध गया । बोली एक आप थे महाराज । एक छत्र सम्राट थे कुरु राज्‍य के । युद्ध के बाद इमोशनल हो गये और सत्‍ता छोड़ दी । भोले युधिष्ठिर ने कहा भी था कि सिंहासन पर आप ही बैठे रहिये । हम पांचों भाई आदेशों का पालन करते रहेंगे । पर ऐन वक्‍त पर भावुक हो जाने की आपकी कमजोरी ने कहीं का न छोड़ा । उस बुढ़ापे में भूखे प्‍यासे रहकर जंगल जंगल भटकना पड़ा । दावानल में जलकर प्राण त्‍यागने पड़े, छि: ।
           धृतराष्‍ट्र चुपचाप सुनते रहे । पश्‍चाताप के आंसू पोंछते रहे । तभी गांधारी ने पति का सर गोद में रख लिया और सहलाते हुए बोलीं छोड़िये महराज, मैं मूर्ख भी क्‍या विषय ले बैठी । मुझे यह बताइये कि भू-लोक के लोकतांत्रिक शासक भी अपने पुत्रों से उतना मोह करते हैं जितना आप दुर्योधन से किया करते थे ।
             प्रश्‍न सुनकर धृतराष्‍ट्र सहसा उठ गये । उनका सर शर्म से झुक गया । कुछ देर तक गले से आवाज न निकली । गांधारी ने वही प्रश्‍न फिर पूछा । धृतराष्‍ट्र ने कहा दु:ख की बात है गांधारी । इस मामले में भी आज के शासकों ने मुझे पीछे छोड़ दिया है । मुझे तो मात्र पुत्र का मोह था, लेकिन आज भू-लोक के शासक पुत्रवधु मोह, जमाई मोह और प्रेयसी मोह से भी पीड़ित हैं ।
               इसका मतलब कि पुत्र मोह से पीड़ित सत्‍ताधारी लोग भी मेरे भाई शकुनि की चालों के सहारे पांडवों जैसे योग्‍य प्रत्‍याशियों को बनवास की राह दिखाते होंगे गांधारी ने अनुमान लगाया जिसका पूरा समर्थन धृतराष्‍ट्र ने किया । बोले हे  गांधारी, हम तो शकुनि की मदद से पांडवों को जंगल तक भेज ही पाये, आजकल के शासक तो प्रतिद्वंद्वियों को सीधे यमलोक का द्वार दिखा रहे हैं । उनका सिद्धांत है, बांस को उगते ही उखाड़ दो । न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी ।

            फिर थोड़ा रुककर धृतराष्‍ट्र आगे कहने लगे भू-लोक के शासकों ने महाभारत का खूब मनन किया है । तभी तो वे पांडवों की मदद के लिए किसी कृष्‍ण को पैदा ही नहीं होने देते ।   




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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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