समस्या बस तभी तक है....



समस्या बस तभी तक है
कि जब तक कृष्ण कारागार में हैं ,
कि अर्जुन अस्त्र शस्त्रों को नहीं करते ग्रहण ,
कि जब तक कैद है पक्षी  सलाखों में ,
समस्या बस तभी तक है ।
पिंजरे से निकल कर जिस समय पक्षी
खुले आकाश में उड़ने लगेगा ,
आसक्ति के बेशर्म जिद्दी मैल से खुद को छुड़ा लेगा,  
बस ! तभी आरम्भ होगा उस  नए अध्याय का 
नए  अध्याय में
आसक्ति के स्थान पर  वैराग्य होगा
ममता की जगह समता रहेगी  
संग्रह की जगह परित्याग होगा
हिंसा की जगह  संदेश करुणा का वहां होगा 
 नहीं होगी वहाँ ईर्ष्या वहां बस प्रेम होगा
संदेह के स्थान पर विश्वास होगा
स्वार्थ के बदले वहां परमार्थ होगा ।
समस्या है मगर केवल तभी तक है ,
कि जब तक कैद है पक्षी सलाखों में ।
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डॉ. दिनेश चंद्र थपलियाल

I like to write on cultural, social and literary issues.
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