यह कोई पत्नी – पीड़ित मर्दों का मंच
नहीं था । इसकी आम बैठक भी किसी सरकारी अस्पताल के आजू-बाजू नहीं बुलाई गई थी ।
बल्कि यह तो ऐसी पत्नियों का सम्मेलन था, जो अपने पतिदेवों से परेशान थीं । जिनके
पेटों में कहने के लिए बहुत कुछ भरा था ।
सम्मेलन चूंकि सादगी से मनाया
जाना था । अत: नगर के मात्र फाइव स्टार होटल का बैंकेट हाल बुक किया गया, जिसका
कुल खर्च चालीस हजार आया । वह भी लंच मिला कर । मंच सज्जा व म्यूजिक की व्यवस्था
होटल के पत्नी-पीड़ित मालिक ने मुफ्त में की थी
।
इस सम्मेलन में जितनी भी महिलाएं मौजूद थीं, वे सब
ब्यूटीशियन से मेक अप कराकर आई थीं । फेशियल किये उनके चेहरे ताजे़ गुलाब से महक
रहे थे । करीब – करीब हर महिला डिजाइनर साड़ी में लिपटी हुई थी । हरेक के गले में बप्पी
लहरी जैसी सोने की सांकलें लटकी थीं तो कानों में अमलतास की मंजरियों से सोने के ही कर्ण पुष्प लटके थे । माथे पर बड़ी-बड़ी
रंग-बिरंगी बिंदियां अलग झिलमिला रही थीं । कांधों पर पर्स लटके थे व पांवों में
एक से एक नायाब चप्पलें व जूतियां चमक रहीं थी ।
सम्मेलन की संचालिका चंचल
सरकार ने माइक संभाला । जैसे नेता भीड़ का सागर देख कर खुशी से रोमांचित हो जाता
है, ठीक वैसे ही श्रीमती सरकार भी खचाखच भरा हाल देख कर बाग-बाग हो उठीं । फिर
मुस्करा कर कहना शुरु किया – बहनों, इतनी बड़ी तादाद में आपको देखकर मुझे कोई शक नहीं रहा कि पत्नियों
पर अत्याचार बढ़ रहे हैं । आज हमारे बीच चीफ गेस्ट के तौर पर पधारी हैं अनेकता जी
। उनके बारे में कुछ कहना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है । पत्नियों की छटपटाहट को
छोटे परदे पर उन्होंने बड़ी खूबसूरती से उतारा है । जबसे उनके सीरियल टीवी पर आये
हैं, हम पत्नियों के जीवन में जैसे क्रांति आ गई है । तब से जाने कितनी सासें
स्वर्गलोक का सुख लूटने ऊपर जा पहुंची हैं । कितनी ही ननदों से हम पत्नियों को
मुक्ति मिल चुकी है व कितने ही परिवार आजादी की सांस ले रहे हैं ।
मैं और ज्यादा वक्त बरबाद न
करते हुए चीफ गेस्ट से रिक्वेस्ट करती हूं कि हम सब पत्नियों की आंखों पर पड़े परदे उठाएँ।
तालियों की गड़गड़ाहट के बीच
अनेकता जी माइक पर आईं । उनके माथे पर भौंहो से लेकर बालों की जड़ तक सिंदूर का लाल
टीका लगा था । किसी साध्वी की तरह
आशीर्वाद के अंदाज में उन्होंने हथेली दिखाई व बोलीं –
बहनों व दीदियों । मैंने यह
नारी योनि में जो अवतार लिया है, वह फालतू में नहीं लिया । मैं इस भूमंडल से
परिवार नामक संस्था का विध्वंस करने आई हूं । यह परिवार ही है जो आपको खुलकर
खाने-खेलने नहीं देता । अभी आपके यौवन की कलियां फूल भी नहीं बन पाती कि पीछे से
बच्चों की लाइन लग जाती है । फीगर बिगड़ जाती है । कहां तो हर दो-तीन महीने में
सैर सपाटे का प्रोग्राम होना चाहिए थ, कहां बगल में चिल्ल पों वे पेट में बोझ
बांध दिया जाता है । ये सासें, जो खुद तो अपने टाइम पर खूब गुलछर्रे उड़ाती हैं और
आपको हर तरफ से दबाने के चक्कर में रहती हैं । और ये पति नाम के जंतु । कभी मां – बाप को खुश करने में
लगे रहेंगे तो कभी बहनों को व जीजाओं को । पत्नी का ख्याल तो इन्हे महीने – दो महीने में आता है ।
तो इस चक्रव्यूह के परखच्चे
उड़ाने का संकल्प मैंने कर लिया है । मैं इस मीटिंग में बैठकर आपकी आप – बीती सुनुंगी और ऐसे
सीरियल बनाऊंगी कि इंडियन सोशल स्ट्रक्चर की धज्जियां उड़ जाएंगी । थैंक्स
--------------।
कहकर तालियों के शोर में
पत्नियों का जोशीला स्वागत स्वीकारते हुए अनेकता जी अपनी कुरसी पर जा बैठीं ।
चंचल सरकार चहकी – सुना आपने । हमारी
मुख्य अतिथि अनेकता जी आपकी बातें गौर से सुनेंगी व उस पर सीरियल बनाएंगी । मैं आपसे रिक्वेस्ट
करती हूं कि खुद – ब – खुद मंच पर आयें
और अपना दुख – दर्द बांटें ।
यह सुन कर एक महिला भीड़ में से
उठी व माइक पर पहुंची । उस महिला का श्याम वर्णी मुख मंडल ठीक वैसे ही चमक रहा था
जैसे अंधेरे में हीटर का सुर्ख फिलामेंट दहकता भी है व दमकता भी । वह बोलीं –
‘बहनों । मुझे लोग ‘चित्रा नाग’ कह कर बुलाते हैं पर मेरा पूरा नाम ‘चित्रा नाग बेचैन है’ । मैं कवयित्री हूं
। ये कविताएं हर वक्त मेरे भीतर हिलोरें लेती हैं । मुझे चैन से नहीं बैठने देतीं
। मेरा दुर्भाग्य देखिये कि मेरे पति गणित जैसे नीरस विषय के प्रोफेसर हैं। हर
वक्त समीकरण हल करने में डूबे रहते हैं । मैं कभी पोयटिक मूड में आकर कहती हूं – बगिया में फूल खिले । भौरें भी उड़ के चले । तो उनका जवाब होता है – बस इतना बता दो कि फूल कितने थे । भौरें तो
मैं खुद निकाल लूंगा । कहकर हाथ में कागज पेंसिल लेकर बैठ जाते हैं ।
आप ही बताइये उस वक्त मेरे कवि
हृदय पर क्या बीतती होगी । क्या ये क्राइम नहीं है । क्या ये मेरी कोमल भावनाओं
की नृशंस हत्या नहीं है । कभी कहते हैं – चित्रा तुम एक हायर
आर्डर की इक्वेशन हो । शादी के बाद से ही मैं तुम्हें हल करने में लगा हूं । मगर
तुम अभी तक हल नहीं हुई । हां । इतना जरुर है कि इनके, यानी प्रोफेसर महाशय के खरचे कुछ नहीं है । साल में एक बार कागजों के दस – बारह रिम रखवा लेती
हूं । साल में एक बार एक शर्ट– पैंट सिलवा देती हूं । साल भर मजे में खींच लेते हैं । चप्पल तो पिछले
दो साल से चला रहे हैं । इसलिए मेरा खर्चा – पानी किसी तरह चल जाता है ।
अभी चित्रा जी का राग – बेचैनी चल ही रहा था
कि भीड़ मे से एक विराटकाय महिला उठी और रिक्टर
स्केल पर आए नौ कैटेगरी के भूकंप की लहरों की तरह धमकती हुई मंच पर जा चढ़ीं । चित्रा
के हाथ से माइक झपट, गरज कर बोलीं – बहनों, चित्रा नाग नामकी इस बेचैन आत्मा का दर्द तो
मेरे सामने कहीं ठहरता ही नहीं । मेरी बदकिस्मती देखो, जिससे भी शादी करती हूं
वही ऊपर वाले से प्यार कर बैठता है । पति
नामके दो निरीह जन्तु
जब मुझे अकेली छोड़ दिल के टुकड़े – टुकड़े करके चल दिये
तो इस तीसरे से जीवन की डोर बांधी थी । मगर ये भी फेरों के बाद सीधा अस्पताल भागा
और फिर वहीं लेट गया । मैं तनहाइयों में खोई रहती हूं और ये पट्ठा नर्सो से घिरा
सेहत बना रहा होता है ।
मगर मुझे उससे क्या मतलब । उसके ट्रकों का किराया,
बसों की इनकम, टैक्सी भाड़ा – ये सब मुझे मिल जाता है । तीस हजार से किसी तरह अपना काम चलाती हूं ।
बाकी दस हजार इन पतिदेव पर लगाती हूं । सास – ससुर अपने लायक
भीख मांग ही लेते हैं । बस इसी तरह कट रही है ।
अभी वह गजनन्दिनी मंच से उतरी
भी न थीं कि लाल साड़ी पहने एक हाथ में हथौड़ा तथा दूसरे में हंसिया लिये एक अधेड़
महिला मंच पर चढ़ गई । उसके माथे पर बड़ी सी लाल बिंदिया चिपकी हुई थी ।
क्रोध में चीखते हुए वह बोली – ये जो हमारे साथ हस्बैंड
नाम का प्राणी नत्थी किया गया है – इसकी जुबान इस हंसिये सी
धारदार व दिल हथौड़े सा सख्त है । यह सपने में भी मुट्ठियां भींच कर बड़बड़ाता है – कामरेड, लाल सलाम, साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, सर्वहारा, फासीवाद और भी
जाने क्या – क्या । इसकी जेब में बस का किराया भी बड़ी
मुश्किल से मिलता है । जब से मेरी शादी हुई है, यह मुझे अकेली छोड़ रैलियों में चल
देता है । मेरी इनकम का कोई जरिया इसने नहीं सोचा । मजबूर होकर मुझे घर किराये पर
उठाना पड़ा । पार्टी के नाम से चंदा इकट्ठा करके खुद डकारना पड़ा ।
तभी एक हीरोइन सी महिला स्टेज पर आ धमकी व गाने लगी – हमारे हस्बैंड का
तो बैंड बजा हुआ है । हमे एक घंटे के लिए भी कहीं नहीं जाने देते । सारी प्रोपर्टी
बेच कर हमारे गहनों में झोंक दी । मगर हमें इन महाशय की सूरत देख कर मतली आने लगती
है । गरम दूध न घूंटा जाता है, और न उगला जाता । अब तक मैं इनका एक फ्लैट बिकवा
चुकी हूं । खर्चा ठीक – ठाक चल जाता है ।
अभी ‘आप – बीती सेशन’ चल ही रहा था
कि संगीतकारों ने संकेत किया । सॉफ्ट व हाई ड्रिंक सर्व होने लगे । ड्रिंक्स लेकर
पति – पीड़ित महिलाएं पतियों के अत्याचार भूलने लगीं । स्टेज
पर डांस तथा गाने शुरु हो गये । सबने अपनी – अपनी अदाओं का
प्रदर्शन किया । जम कर नाचीं ।
तब तक बुफे की टेबल सज चुकी थी । नृत्य – गान व ड्रिंक्स के
बाद पत्नियों की भूख काबू से बाहर हो चुकी थी । अत: पुरुष अत्याचारों की मारी
बेचारी पत्नियां खाने पर टूट पड़ीं ।
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें