यह एक्सपैरीमेंट
वाकई नया था । 'दूसरी तरफ वाले' जब डाकुओं, हत्यारों और दंगे
भड़काने वालों को टिकट बांटने में व्यस्त थे, ठीक उसी वक्त 'ये लोग' साधु संन्यासियों, ब्रह्मचारियों और मठाधीशों को ट्राई कर रहे थे । इस अनूठे नुस्खे का
परिणाम चौंकाने वाला निकला । भगवा
पहने, चिमटे, कमंडल, त्रिशूल उठाये साधुओं की पूरी फौज चुनाव जीतकर राजधानी
पहुंच गई । जहां देखो, जै श्रीराम के कर्णभेदी नारे लगाती
भगवा भीड़ दिखायी पड़ती। सारा वातावरण राममय हो उठा । लगता था – कलयुग का आखिरी वक्त आ पहुंचा है। दो चार रोज में सतयुग शुरु हो जायेगा,
वही सतयुग जिसमें जीने के, मुंगेरी सपने हर भारतीय दिन-रात देखा करता है ।
जीतकर
आनेवालों में एक बाबा
बैरागी भी थे । मध्य भारत के घने शहर में अच्छा खासा योग धाम था उनका । योग के
अलावा वे आयुर्वेदिक दवाएं, किताबें वगैरह भी
बेचते थे । सैंकड़ों एकड़ का फार्म था । नंद गोप की तर्ज पर हजारों गायों की एक शाला
थी । देश के चारों कोनों में चार मठ और भी थे – जहां सीजन के हिसाब से
जा-जा कर वह युवा संन्यासियों को दीक्षा दिया करते थे ।
सब
कुछ ठीक – ठाक चल रहा था कि एक सुबह उन लोगों को ऑफर मिली –
एम.पी. बनोगे ।
ऑफर
छोटी मोटी नहीं थी । जिस टिकट की आस में पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता जिंदगी भर
इंतजार करके चल बसते हैं, ओर जो टिकट तब भी उन्हें नसीब नहीं होता –
वही टिकट यों खुद चलकर योग-धाम के दरवाजे पर दस्तक देगा –
बाबा ने सपने में भी नहीं सोचा होगा ।
बाबा
बैरागी चुनाव लड़ रहे हैं – यह खबर सुनते ही भक्तों के झुंड योग-धाम की तरफ बढ़ने लगे । पूछिये – कहां चले । तो एक ही जवाब मिलता – योगधाम, जानते
नहीं बाबा बैरागी इलैक्सन लड़ रहें हैं ।
विरोधियों
की जमानत जब्त करा कर बाबा राजधानी पहुंच गये । लोगों की खुशी का पारावार न था ।
सबको यकीन था कि ऐसी दिव्य आत्मा राजधानी गयी है तो सब कुछ ठीक हो जाएगा ।
परेशानियों की काली रात बीतने ही वाली है
।
राजधानी
आये बाबा बैरागी को करीब महीना हो गया था । फोन पर संन्यासिनी जगज्जननी से तो
बातें होती थीं, पर धंधे की बारीकियां फोन पर कैसे सिखाएं । सो, बाबा ने एक गोपनीय
पत्र ऋषि कुमार चरपटनाथ के नाम लिखा । वह पत्र लीक होकर प्रेस तक पहुंचा और अगले
दिन सारे अखबारों में छप गया ।
उसी
पत्र के कुछ अंश बाबा बैरागी से क्षमा याचना सहित प्रस्तुत हैं :-
प्रिय ऋषि कुमार और पुत्र चरपट,
हमेशा सुखी रहो ।
शपथ
मैने पूरे साधु भेस में ली । सफेद धोती, सफेद गमछा, गल में एक मुखी रुद्राक्ष की
एक सौ आठ दानों की माला, सोने की चेन में पिरोये दस-दस रत्ती के नव रत्नों की
माला, स्फटिक मणियों की माला, वैजयंती और तुलसी की माला, पैरों में लकड़ी के
खड़ाऊं, माथे पर गोरोचन का तिलक, छाती तक लहराती सफेद दाढ़ी –
मूंछें और पीठ पर बिखरी जटा– इस भेस में हमें शपथ लेते देख
जनता जै – जैकार करने लगी । बड़े – बड़े
आकर शीश झुकाने लगे । टीवी वालों ने भी खूब तस्वीरें खींची । तब से रोज चैनलों पर
मेरे इंटरव्यू आ रहे हैं । मेरा तन-मन यहां रम गया है । योग-धाम की जिम्मेदारी
अब तुम्हारी है ।
आगे खास
बात ये है कि दीक्षा शिविर बीच में छोड़कर जो तीन सौ बेईमान, धूर्त भागे हैं, वे सब
अच्छी नौकरियों में हैं । गुरु – दक्षिणा के दस-दस हजार उन पर छोड़ना मत ।
डरा – धमका कर वसूली हो जायेगी । आगे से दीक्षांत समारोह की
बजाय गुरु दक्षिणा दाखिले के पहले रोज ही रखवा लेना ।
धूप
बत्तियों और अगरबत्तियों की सेल घट रही है । उनमें जलाने पर गोबर की गंध आने लगी
है । गोबर में केवड़े और अगर की लकड़ी का अर्क ज्यादा डालने की जरुरत है । इससे
गोबर की गंध पूरी दब जाएगी । च्यवन प्राश की सेल भी घट रही है । वैद्य जी को कहना–
आलू की महक दबाने के लिए मुलेठी का पाउडर ज्यादा डालें । विज्ञापन इस तरह देना – सोने – चांदी ओर मकरध्वज वाला च्यवन प्राश अब नये
स्वाद में ।
शराब
के ठेकेदार से बात हो गयी है । भागवत सप्ताह की कोटेशन टर्न की बेसिस पर भरना ।
टैंट, लाईट, माइक, म्यूजिक, ट्रांसपोर्ट ओर प्रसाद हमारा होगा । साठ लाख से कम मत
भरना ।
प्रेस
में मेरी किताब “लोभ – नरक का मूल” पड़ी है । जल्दी
छपवा देना । दूसरी किताब “भगवान से मिलिये” हाथों हाथ बिक रही है । सैकेंड एडीशन प्रेस में
भेज देना ।
बाकी
यहां लोगों में योगा का क्रेज बहुत है । लोग प्राचीन भारत को जीने की तमन्ना रखते हैं ।
उनके इस सपने को भुनाने का अच्छा मौका है । जरा से चौकन्ने होकर काम किया तो
सालाना टर्न ओवर पचास करोड़ के पार जा सकता
है----------
तुम्हारा गुरु तथा
पिता – बाबा बैरागी
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें